Font Problem

१.मैं कहूं देख्यो री सलोना:


 

तुकारामजी की
हिन्दी रचनाँए

 
 

मीराँबाई

 
 

चरित्र

 
 

अनुवाद

 
 

गांधीज

 
 

बालगोपाल

 
 

प्रतिक्रिया

 
 

मुखपृष्ट


मीराँबाई(१५०४-१५४६ ई.स.)

मैं कहूं देख्यो री सलोना ढोटा,
सांवरिया नंदनंदा ।
कट तट लाल काछनी सोहै,
सीस मोर का चंदा ॥टेक॥
हौं दधि बेचन चली गोकल को,
रोक रह्यो गोविन्दा ।
मीरा के प्रभु गिरिधरनागर,
दूर करो दुख धंदा ॥
मैं कहूं देख्यो री सलोना नंदनंदा॥१॥

सलोना - सुंदर।
ढोटा - लड़का।
कुमार - पुत्र।
कटितट - कटिस्थान, कमर।

मैंने श्रीनन्द गोप के पुत्र साँवरिया जो सुंदर कुमार है को कहीं देखा है। उसके कटिप्रदेश में लाल वस्त्र शोभायमान है तो मस्तक पर मोरपिच्छ का मुकुट सुशोभित है। जब मैं दही बेचने को गोकुल की ओर चली तो वह गोविन्द मुझे रोकने लगा। मीराँ के हे प्रियतम गिरिधरनागर! मेरे दु:खद्वंद्वों को समाप्त कर दो।

(१)इस पद की भाषा ठेठ ब्रजी है।

(२)इस पद में कटिप्रदेश में लाल काछनी का काँछना कहा है, किन्तु मीराॅंबाई के अन्य सभी पदों में पीताम्बर का उल्लेख है। संस्कृत साहित्य ही नहीं, कृष्ण के समस्त भक्तों ने पीताम्बर का ही उल्लेख किया है। यह नवीन तथ्य विचारणीय है। वैसे लाल रंग प्रेमप्रीति का प्रतीक है। यदि मीराँबाई ने लाल रंग की काँछनी श्रीकृष्ण को इस भावना से पहनाई है तो वह उचित मानी जानी चाहिए तथा इसे नई उद्भावना भी मानी जानी चाहिए। गाणपत्य (गणेश उपासक) व शाक्त (शक्ति के उपासक) लाल रंग को रक्त का प्रतीक मानते हैं और रक्त वस्त्र ही धारण करते और कराते हैं। स्त्रियों या में सिंदूर की भाँति लाल रंग सौभाग्यसूचक माना जाता है। विवाह व मांगलिक अवसरों पर प्राय: लाल रंग के वस्त्र इसीलिए सौभाग्यवती स्त्रियों को पहनाए जाते हैं।


मेरे तो गिरधर गोपाल (मीराँबाई की मूल पदावली) -ब्रजेन्द्र सिंहल भारतीय विद्या मंदिर.


अगला पद